Eassy on hamari azadi ke nayak per nibandh|हमारी आजादी के नायक पर निबंध
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स्वतंत्रता के बाद एक नया और खंडित राष्ट्र
अगस्त 1947 में जब भारत आजाद हुआ तो उसके सामने कई बड़ी चुनौतियाँ थीं बँटवारे की वजह से 80 लाख शरणार्थी पाकिस्तान से भारत आ गए थे।
इन लोगों के लिए रहने का इंतजाम करना और उन्हें रोजगार देना जरूरी था। इसके बाद रियासतों की समस्या थी। तकरीबन 500 रियासतें राजाओं या
नवाबों के शासन में चल रही थीं।
इन सभी को नए राष्ट्र में शामिल होने के लिए तैयार करना एक टेढ़ा काम था। शरणार्थियों और रियासतों की समस्या पर फौरन ध्यान देना लाजिमी था। लंबे दौर में इस नवजात राष्ट्र को एक ऐसी राजनीतिक व्यवस्था भी विकसित करनी थी जो यहाँ के लोगों की आशाओं और आकांक्षाओं को सबसे अच्छी तरह व्यक्त कर सके।
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अभी स्वतंत्रता को छः महीने भी नहीं हुये थे कि सारा राष्ट्र गहरे शोक में पड़ गया। 30 जनवरी 1948 को कट्टर विचारों वाले नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या कर दी। वह गांधीजी के इस दृढ़ विश्वास से मतभेद रखता था कि हिन्दुओं और मुसलमानों को
सदभावना बनाते हुये इकट्ठे रहना चाहिए। उसी शाम हक्के-बक्के राष्ट्र ने आकाशवाणी पर जवाहरलाल नेहरू का भावुक भाषण सुना “दोस्तो, साथियो, हमारी जिंदगी की रोशनी बुझ गई और चारों तरफ अँधेरा है.. हमारे प्रिय नेता… राष्ट्रपिता अब नहीं रहे।”
2022, 23 1947 में भारत की आबादी काफी बड़ी थी तकरीबन 34.5 करोड़ यह आबादी भी आपस में बँटी हुई थी। इसमें ऊँची जाति और नीची जाति,
बहुल हिंदू समुदाय और अन्य धर्मों को मानने वाले भारतीय थे। इस विशाल देश के लोग तरह-तरह की भाषाएँ बोलते थे, उनके पहनावों में भारी फ़र्क
था, उनके खान-पान और काम-धंधों में भारी विविधता थी। इतनी विविधता वाले लोगों को एक राष्ट्र राज्य के रूप में कैसे संगठित किया जा सकता था? एकता की समस्या के साथ ही विकास भी एक बड़ी समस्या थी। स्वतंत्रता के समय भारत की एक विशाल संख्या गाँवों में रहती थी।
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आजीविका के लिए किसान और काश्तकार बारिश पर निर्भर रहते थे। यही स्थिति अर्थव्यवस्था के गैर-कृषि क्षेत्रों की थी। अगर फसल चौपट हो जाती
तो नाई, बढ़ई, बुनकर और अन्य कारीगरों की आमदनी पर भी संकट पैदा हो जाता था। शहरों में फैक्ट्री मजदूर भीड़ भरी झुग्गी बस्तियों में रहते थे जहाँ शिक्षा या स्वास्थ्य सुविधाओं की खास व्यवस्था नहीं थी। इस विशाल आबादी को गरीबी के चंगुल से निकालने के लिए न केवल खेती की उपज बढ़ाना
जरूरी था बल्कि नए उद्योगों का निर्माण भी करना था जहाँ लोगों को रोजगार मिल सके।
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एकता और विकास की प्रक्रियाओं को साथ-साथ चलना था। अगर भारत के विभिन्न तबकों के बीच मौजूद मतभेदों को दूर न किया जाता तो वे
हिंसक और बहुत खतरनाक टकरावों का रूप ले सकते थे। लिहाजा ऐसे टकराव देश के लिए मँहगे भी पड़ते थे। कहीं ऊँची जाति और नीची जाति
के बीच कहीं हिंदुओं और मुसलमानों के बीच तो कहीं किसी और वजह से तनाव की आशंका बनी हुई थी। दूसरी तरफ, अगर आर्थिक विकास के
लाभ आबादी के बड़े हिस्से को नहीं मिलते हैं तो और ज्यादा भेदभाव पैदा हो सकता था। ऐसी स्थिति में अमीर और गरीब, शहर और देहात संपन्न और
पिछड़े इलाकों का फ़र्क पैदा हो सकता था।
नए संविधान की रचना दिसंबर 1946 से नवंबर 1949 के बीच तकरीबन 300 भारतीयों ने देश के
राजनीतिक भविष्य के बारे में लंबा विचार-विमर्श किया। यद्यपि इस “संविधान सभा” की बैठकें नई दिल्ली में आयोजित की गई थीं परंतु इसके
सदस्य पूरे देश में फैले हुए थे और वे बहुत सारी राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधि थे। इन्हीं चर्चाओं के फलस्वरूप भारत का संविधान लिखा गया
जिसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया।
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हमारे संविधान की एक खासियत यह थी कि उसमें सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार का प्रावधान किया गया था। इसका मतलब यह था कि 21 साल से ज्यादा उम्र के सभी भारतीयों को प्रांतीय और राष्ट्रीय चुनावों में वोट देने का अधिकार था। यह एक क्रांतिकारी कदम था। इससे पहले कभी भी भारतीयों को खुद अपने नेता चुनने का अधिकार नहीं मिला था। ब्रिटेन और अमरीका जैसे अन्य देशों की जनता को यह अधिकार टुकड़ों-टुकड़ों मे गतिविधि कल्पना कीजिए कि आप 1947 में भारत से जाने वाले
एक ब्रिटिश अफसर हैं। उसी समय आप अपने घर वालों के नाम खत लिखते हैं जिसमें आप इस बात की चर्चा कर रहे हैं कि अंग्रेजों की अनुपस्थिति में भारत का क्या होगा। भारत के भविष्य के बारे में आपकी क्या राय होगी?
सार्वभौमिक व्यस्क सभी वयस्क नागरिकों को मत
देने का अधिकार